आज मकानमालिक के मिट्ठू नही रहे
जब इस नये घर में आई थी, तो बस दो मिट्ठू ही तो अपने थे , बाकि सब पराये ही ल्गे. जो कितनी कूटनीति व् छल-कपट की पैतरेबाजी से भरे थे. बस दो मिट्ठू , अपने पिंजरे से बोलते, मै आते जाते उन्हें देखती, और उन्हें खाने को व् पानी देती . किन्तु कल बहुत गर्मी में जितनी बार घर लौटी, मै उन्हें कुछ न कुछ देती रही, व् उनसे बतियाती रही . कल सुबह से ही मै, उनके पीछे लगी थी, की वो पानी पिए .किन्तु, कल की रत बड़ी उदास व् मनहूस थी . रात मेरी मेरी नींद खुल गयी, तो सामने के कालेज ग्राउंड में लगे, गुलमोहर के पेड़ से मुझे किसी पखेरू के चीखने की आवाज सुनाई देती रही . मै दुसरे तल्ले पर थी,समझ नही आया की, वो, दोनों मिट्ठू ही, थे,जो, की बिल्ली के पंजे में फंसे चीख रहे थे. जब प्रात पता चला, तो मुझे बहुत वेदना हुयी, की मै उनकी चीख कितनी देर तक सुनती रही , किन्तु, ये नही सोच पाई, की वो हमारे प्रिय मिट्ठू थे, जो बचाओ की गुहार लगा रहे थे. वो दोनों रत मरे गये, उन्हें बिल्ली ने जाने कितनी देर तक दबोच रखा था, वो मुझे पुकार रहे थे, मै जाग रही थी, किन्तु, मेरी अक्ल में ये नही आया की, वो चीख उनकी है .सच, आज समझ आया, की हमारे बस में हमारी एक साँस भी नही है , उपर वाले की मर्जी के बिना पत्ता भी नही हिलता .वो मरे गये, किन्तु, कितनी देर तक वो, कल के पंजों में फंसे संघर्ष करते रहे .