Monday 24 June 2013

आज लिखी ये कविता

कल्प कल्प युगों में ये,
ये, जो अकल्पित घटता है
कौन है , जो आज तुम्हारे
कोप से बचा है
जो, मारे  गये
क्या, वो नही तुम्हारे सखा है
हर पल बच्चों की तरह
बिलखा है
रोक लो तांडव
ये क्या अपने कपाल पर
वक्त के भाल पर लिखा है
हे शिव ,आपसे
ये मेरी इल्तजा है
सुन लीजिये प्रभु 
बचपन में आल्हा पढ़ी थी
कुछ पन्तियाँ  है
आप भी देखे , हमारे देश का दर्शन है ये ....

सदा तुरैया न वन फूले , यारों सदा न सावन होय
सदा न माता , उर में जन्मे , यारों समय न बारम्बार
जैसे पात  टूटी तरवर से , गिरी के बहुरि न बारम्बार
मानुष देहि, यह दुर्लभ है , ताते करो , सुयश के काम 

Sunday 23 June 2013

आज मन नही, कि घर से कागज में लिखकर लायी शायरी को, यंहा ब्लॉग में लिखु . मुक्त होकर लिखने की आदत रही है, मेरी . कल से उधेड़बुन में मन लगा है,सोचकर शानझ से बहुत उद्धिग्न थी, की वंहा उत्तराखंड में , नेपाल के बदमाशों ने वंहा युवतियों को अपनी हवश का शिकार बनाया . क्या शीघ्रता से सहायता नही पंहुचायी जा सकती थि. कंही ये हिन्दुओं के देश में उनकी आपसी फुट का दुष्फल तो नही, यंहा ये देश तन्हा जीता है. हिन्दू कभी भी साथ में नही जीते, वो अलग-थलग ही रहते है, उनकी सहानुभूति नही है, अपने ही समुदाय से .यंही कारन है, की सर्कार ने आपदा प्रबंधन को तेजी से करने की जरुरत नही मानी , चाहते तो, सारे संशाधन झोंक कर वंहा फंसे लोगो को, दो दिन में निकल सकते थे .कमसे कम लडकियों की इज्जत को बचाने के लिए, सारे राज्यों से पुलिस भेज सकते थे. आप ये न कहिये की, तब उन्हें, उनसे कौन बचाता .

Sunday 16 June 2013

जरा सी बारिश से
सरे जंगल हरे हो गये
घास-पात , सारे
पेड़-पौधे  हरे हो गये
जैसे तेरे जाने के बाद
तेरी जुदाई के जख्म  हरे हो गये
जोगेश्वरी 

Sunday 2 June 2013

आज मकानमालिक के मिट्ठू नही रहे

जब इस नये घर में आई थी, तो बस दो मिट्ठू ही तो अपने थे , बाकि सब पराये ही ल्गे. जो कितनी कूटनीति व् छल-कपट की पैतरेबाजी से भरे थे. बस दो मिट्ठू , अपने पिंजरे से बोलते, मै  आते जाते उन्हें देखती, और उन्हें खाने को व् पानी देती . किन्तु कल बहुत गर्मी में जितनी बार घर लौटी, मै उन्हें कुछ न कुछ देती रही, व् उनसे बतियाती रही . कल सुबह से ही मै, उनके पीछे लगी थी, की वो पानी पिए .किन्तु, कल की रत बड़ी उदास व् मनहूस थी . रात  मेरी मेरी नींद खुल गयी, तो सामने के कालेज ग्राउंड में लगे, गुलमोहर के पेड़ से मुझे किसी पखेरू के चीखने की आवाज सुनाई देती रही . मै  दुसरे तल्ले पर थी,समझ नही आया की, वो, दोनों मिट्ठू ही, थे,जो, की बिल्ली के पंजे में फंसे चीख रहे थे. जब प्रात  पता चला, तो मुझे बहुत वेदना हुयी, की मै  उनकी चीख कितनी देर तक सुनती रही , किन्तु, ये नही सोच पाई, की वो हमारे प्रिय मिट्ठू थे, जो बचाओ की गुहार लगा रहे थे. वो दोनों रत मरे गये, उन्हें बिल्ली ने जाने कितनी देर तक दबोच रखा था, वो मुझे पुकार रहे थे, मै  जाग रही थी, किन्तु, मेरी अक्ल में ये नही आया की, वो चीख उनकी है .सच, आज समझ आया, की हमारे बस में हमारी एक साँस भी नही है , उपर वाले की मर्जी के बिना पत्ता भी नही हिलता .वो मरे गये, किन्तु, कितनी देर तक वो, कल के पंजों में फंसे  संघर्ष करते रहे .

Tuesday 9 October 2012

apni srjna se jagti aurat

ye sach tha ki, vo esa kapurus tha
jo kuchh nhi kr skta tha
isliye, sirf balikaon sng hi
vyabhichar krta
use aurat ka hona psand nhi tha
vo apne hrm me unhe sewa me lgata
vo chahta tha, ki
aurat apne astitav ko paye
ishiliye vo aurat ko gaali deta
usne iske liye muhavre bnaye
kintu, afsos, jvab me aurat ne
koi trk nhi socha
vo vaise hi jiti rahi
jaise khanche me vo use
bantta raha, aurat ko
vo kai tukdon me bntkr
khus hoti rhi
ishi pr grv bhi krti rahi

vo ek durdant saudagar

vo ek durdant najivadi saudagar
sirf 16 sal ki ldkiyon ki dlali krta
jb ldki bdi ho jati to
uske hath panv katkr use kunye me
dal deta,
apna ye pap chhupane kahta ki
us kunye me puja ka pani h
jb 16 brs bit jate to
usi kti hui ldki ke tukde jud jate
ek nyi ldki uske samne aati
jo sirf 16 sal ki hoti
aur vo chal pdta, uska vyapar krne